History–इतिहास 20
प्रश्न – राजपूतों के अधीन सामन्तवाद के उत्थान एवं विकास की विवेचना कीजिए। (Discuss the rise and growth of feudalism under the Rajputs.)
अथवा
राजपूत राज्यों में सामन्तवाद के विकास पर एक नोट लिखें। (Write a note on the growth of feudalism under the Rajput Kingdoms.)
अथवा
राजपूत काल में प्रचलित सामन्तवादी व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (Describe the main features of the feudal order existing during the Rajput period.) अथवा
राजपूत काल में सामन्तवाद के विकास पर एक नोट लिखें। इसके गुण एवं दोष भी बताएं। (Write a note on the growth of feudalism under the Rajputs. Discuss its merits and….)
उत्तर- सामन्तवादी व्यवस्था से हमारा अभिप्राय उस विस्तृत सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था से है जो भूमि से होने वाली आय के नियन्त्रण तथा उपभोग पर आधारित थी। सामन्त शब्द की उत्पत्ति लातीनी शब्द ‘फ्यूड’ से बनना है | सामन्तवादी व्यवस्था के अन्तर्गत भूमि के बदले सेवाएं प्राप्त की जाती थीं। राजा भूमि का स्वामीत्व सामन्तों में बांट देता था। इसके बदले सामन्त अपने स्वामी की सेवा करते थे। सामन्तवादी व्यवस्था की विशेषताएं निम्नलिखित थीं –
सामंत- भूमि के स्वामी (Feudal Lords—The owners of Land)- सिद्धान्त रूप में राजा सामंतों का नियुक्ता होता था। परन्तु वह अपनी भूमि को जागीरों के रूप में कुछ निश्चित शर्तों के बदले, अपने अधीन सामन्तो को रखता था | यदि कोई सामन्त अनुदान की शर्तों का पालन करने में असमर्थ होता था, तो राज्य उनकी भूमि को जब्त कर लेता था | भूदान किसी सामन्त को जीवन भर के लिए दिया जाता था। उसकी मृत्यु के पश्चात् यह राजा की इच्छा पर था कि वह सामन्त से सम्बन्धित जागीर उसके परिवार के किसी अन्य सदस्य को दे अथवा न दे | किसी सामंत को प्राप्त भूमि पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती थी।
सामंतों के प्रकार (Types of Feudal Lords)- राजपूत काल में तीन प्रकार के सामन्त होते थे। ये सभी राज्य के उच्चाधिकारी होते थे, जो राजकीय सेवा के बदले वेतन के रूप में भूमि प्राप्त करते थे। दूसरी प्रकार के शासक होते थे, जो पराजित होने पर राजा की अधीनता स्वीकार कर लेते थे। राजा उन्हें अपना सामन्त रख लेता था | तीसरी प्रकार के सामन्त वे पुरोहित थे जिन्हें राजा लगान मुक्त भूमि दान के रूप में प्रदान करता था।
सामंतों के दर्जे (Hierarchy of Feudal Lords)- राजपूत काल में सामन्तों के अनेक दर्जे थे। यह थे महासामन्तधिपित तथा मंडलेश्वर और छोटे सामन्तों को राजा ठाकुर, भोगिका तथा भोकत्ता आदि सामंतों के मुख्य दर्जे होते थे |
सामन्तों के कर्त्तव्य (Duties of the Feudal Lords)- राजपूत काल में सामन्तों को अनेक प्रकार के कर्त्तव्य होते थे- (i) वे अपने अधीन प्रदेश में महाराजा के आदेशों के पालन का वचन देते थे। (ii) वे अपने अधीन प्रदेश में व्यवस्था स्थापित रखने के लिए उत्तरदायी थे। (iii) वे अपने-अपने अधीन प्रदेश से भू-राजस्व एकत्रित करके राजा को उसका निश्चित भाग भेजते थे। (iv) वें युद्धों के दिनों अथवा आंतरिक विद्रोह के समय अपने सैनिकों सहित राजा की सहायता करते थे। (v) उन्हें विशेष अवसरों पर महाराजा के दरबार में उपस्थित होना पड़ता तथा नजराना भी देना पड़ता था |
सामन्तों के अधिकार (Rights of the Feudal Lords)- राजपूत काल के सामन्तों को अनेक अधिकार प्राप्त थे- वे अपने अधीन क्षेत्र से भू- राजस्व एकत्रित करते थे। (ii) वे अपने अधीन क्षेत्र के लोगों के दीवानी तथा फौजदारी मुकद्दमों को देखा करते तथा अपराधियों से जुर्माना वसूल करते थे। (iii) बड़ी-बड़ी उपाधियां भी धारण कर सकते थे। (iv) वे अपने कर्मचारियों की नियुक्ति करते थे। (v) वे व्यावहारिक रूप में अपने अधीन भूमि के स्वामी होते थे। (vi) उन्हें सिंहासन पर सवार होने तथा पालकी का प्रयोग करने का भी अधिकार था।
सामन्तों पर नियन्त्रण (Control over Feudal Lords)- सामन्त यद्यपि अपने अधीनस्थ प्रदेशों की शासन व्यवस्था पालन के लिए स्वतन्त्र थे, परन्तु उन पर कुछ प्रतिबन्ध भी थे- (i) महाराजा समय-समय पर सामन्तों की सेना का निरीक्षण करते थे | (ii) महाराजा के आदेशों का पालन न करने वाले सामन्तों की भूमि को जब्त अथवा कम किया जा सकता था। (iv) सामंतों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित भी किया जा सकता था।
गुण (Merits)- सर्वप्रथम, इस व्यवस्था के अन्तर्गत सामन्तों को अपने प्रदेशों के प्रशासन सम्बन्धी अधिकार दिए जिसके कारण प्रशासनिक मामलों में महाराजा का भार कुछ कम हुआ। इसके अतिरिक्त सामन्त राजा से अधिक जागीरें लेने के प्रयोजन से उसे एक-दूसरे से बढ़ कर सहयोग देने की चेष्टा करते थे। दूसरा, देश में आन्तरिक विद्रोहों के समय सामन्त राजा को यथा सम्भव सहयोग देते थे। तीसरा, सामन्तों ने सांस्कृतिक प्रगति के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपने दरबारों में अनेक विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। परिणामस्वरूप प्रादेशिक तीव्र विकास हुआ। इसके अतिरिक्त अनेक सामन्तों ने मन्दिरों के निर्माण तथा चित्रकला के विकास में भी बड़ा योगदान दिया।
अवगुण (Demerits)- समूचे रूप में अगर देखा जाए तो सामन्ती व्यवस्था के बहुत विनाशकारी परिणाम निकले। भूमि का बड़ा भाग सामन्तों के पास ही रह जाता था। परिणामस्वरूप राजा अपनी सैनिक शक्ति को दृढ़ करने अथवा राज्य के कार्यों की ओर विशेष ध्यान न दे सके। राजा से अधिक-से-अधिक जागीर प्राप्त करने के लिए सामन्तों में द्वेष चलता रहता था। इसके अतिरिक्त सामन्त अपनी शक्ति बढ़ाने तथा अवसर पाकर अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने की आस में भी लगे रहते थे। इसके राज्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़े।
सामन्ती व्यवस्था के कारण किसानों की दशा बहुत दयनीय हो गई। अब उन्हें भूमि से बेदखल किया जा सकता था तथा नए कर लगाए जा सकते थे। सामन्त उनसे विस्ति (बलात श्रम) भी लेते थे। सामन्त उन पर कई प्रकार के अत्याचार भी करते, किसान इस सम्बन्ध में महाराजा के समक्ष शिकायत नहीं कर सकते थे। इस कारण जहां महाराजा का अपनी जनता से विश्वास टुटा, वहीँ कृषि के उत्पादन पर भी बुरा प्रभाव पडा | समाज धनी तथा निर्धन दो वर्गों में विभाजित हो गया। सामन्ती व्यवस्था के कारण देश कई अन्य जातियों में बंट गया। जाति- प्रथा पहले से अधिक कठोर हो गई। इस कारण देश गहरा धक्का लगा। बाह्य आक्रमणों तथा आन्तरिक विद्रोहों से बचाने के लिए राजा सामन्तों के अधीन सैनिकों पर आश्रित होते थे। राजा को कई कठिनाइयों में उलझना पड़ता था, युद्ध के मैदान में भी सामन्तों के सिपाही उनके प्रति ही वफ़ादार थे, न की राजा के प्रति । इसके अतिरिक्त भिन्न-भिन्न सामन्तों के अधीन सेना का संगठन तथा उनके युद्ध करने का ढंग अलग होता था। इस कारण रण क्षेत्र में सैनिकों में परस्पर सामञ्जय उत्पन्न नहीं होता था। इन कारणों से ही राजपूतों पराजय का मुख देखना पड़ा था।