History -इतिहास 16
प्रश्न- आर्य कौन थे ? आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे में विभिन्न विचारधाराओं का वर्णन करें। (Who were the Aryans? Elaborate the various theories connected with the original home of the Aryans.) अथवा
आर्यो के मूल निवास स्थान के सम्बन्ध में प्रचलित भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों का वर्णन करो। इनमें से कौन-सा सर्वमान्य है? (Fiscuss the various theories regarding the original home of the Aryans. Which of these theories ost plausible ?)
अथवा
आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे मुख्य विचारधाराओं का आलोचनात्मक वर्णन करें। इनमें से कौन- सा आधारा अधिक उचित है ?(Critically examine the main theories regarding the original home of the Aryans. Which one of Firis most acceptable ?)
अथवा
आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे में कौन-कौन से मत हैं ? उनमें से कौन-सा मत ठीक माना जाता है और क्यों?
(Discuss the main theories about the original home of the Aryans. Which theory is considered Grect and why ?)
उत्तर– आर्य का शाब्दिक अर्थ है– वास्तव में आर्य विश्व की एक सभ्य तथा गुणी जाति थी। आर्य लोग स्वस्थ, सुन्दर होते थे। उनका कद लम्बा, रंग गोरा, बाल काले तथा आकृति आकर्षक थी। हजारों वर्ष पूर्व वे अपने मूल स्थान को छोड़कर विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में जा बसे उन्होंने इन सभी क्षेत्रों में सभ्यता का प्रकाश फैलाया। कृषि तथा पशु-पालन का प्रसार किया, सामाजिक ढांचे में परिवर्तन किये तथा एक नवीन शासन प्रणाली का आरम्भ किया। भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति की महानता का श्रेय भी आर्यों को ही प्राप्त है। यही नहीं ईरानी, यूनानी, जर्मन भी अपने आपको आर्य कहलाने में अधिक गर्व अनुभव करते हैं। आर्यों के मूल निवास सम्बन्धी सिद्धान्तों की व्याख्या निम्नलिखित अनुसार है –
I. आर्यों का मूल निवास स्थान
(Original Home of the Aryans)
आर्यों के मूल निवास स्थान के विषय में अनेक मतभेद हैं। एक इतिहासकार उन्हें मध्य- एशिया का निवासी बताता है, दूसरा उन्हें उत्तरी ध्रुव का रहने वाला सिद्ध करता है। कुछ इतिहासकार यूरोप के ही किसी क्षेत्र को आर्यों का आदि देश मानते है | इसके विपरीत कुछ ऐसे भी विद्वान् है जो समझते हैं कि आर्य भारत में कहीं बाहर से नहीं आए बल्कि वे भारत से अन्य देशों में गए। इस प्रकार आर्यों के आदि देश के विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। परन्तु हम केवल उन्हीं विचारों पर प्रकाश डालेंगे जो अधिक लोकप्रिय हैं –
ए० सी० दास का सप्त सिन्धु सिद्धान्त (The Sapt-Sindhu Theory of A.C. Duss) – प्रसिद्ध इतिहासकार ए० सी० दास ने अपनी पुस्तक ‘ऋग्वैदिक भारत’ में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि आर्य लोग रूप-रंग में सात सिन्धु प्रदेश के निवासी थे। सप्त-सिन्धु से उनका अभिप्राय आज के पंजाब तथा कश्मीर राज्य से है। श्री दास अनुसार इसी प्रदेश से आर्यों की एक शाखा ईरान में जा बसी। श्री दास ने अपने मत की पुष्टि ऋग्वेद में वर्णित निम्नि तथ्यों के आधार पर की है :-
(i) ऋग्वेद में केवल सप्त-सिन्धु प्रदेश का ही वर्णन है। यदि आर्य लोगों का मूल निवास स्थान सप्तसिन्धु की बजाय कोई और प्रदेश होता तो ऋग्वेद में उसकी महिमा अवश्य गाई जाती ।।
(ii) ऋग्वेद में जिन सात नदियों के नाम आते हैं वे सप्त-सिन्धु प्रदेश में युग-युगान्तरों से बढ़ती चली आ रही है |
(iii) ऋग्वेद में आर्यों के पूर्वजों के बारे में कोई वर्णन नहीं है।
(iv) ऋग्वेद में जिन पेड़-पौधों या पशु-पक्षियों का वर्णन किया गया है, वे सभी सप्त-सिन्धु प्रदेश से सम्बन्धि है |
श्री दास के इस मत से बहुत से विद्वान् सहमत नहीं हैं। इसका प्रथम कारण यह है कि सप्त सिन्धु प्रदेश को मूल निवास सिद्ध करने के लिए केवल ऋग्वेद का ही सहारा लिया गया है। दूसरा, इस सिद्धान्त को स्वीकार करने वाली भाषा विज्ञान की अवहेलना की है। ऋग्वेद में कुछ ऐसे भौगोलिक तथ्यों का उल्लेख है जो सप्त-सिन्धु प्रदेश में कहीं दिखाई नहीं देते। अतः इन सब बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि आर्य लोग सप्त-सिन्धु के नहीं, बल्कि किसी अन्य प्रदेश के रहने वाले थे। अब तो यह भी सिद्ध हो चुका है कि आर्यों के आगमन से पहले इस प्रदेश में सिन्धु घाटी की सभ्यता अपनी चर्म सीमा पर पहुंची हुई थी। परिणामस्वरूप हम आर्यों को सप्त-सिन्धु प्रदेश के मूल निवासी स्वीकार नहीं कर सकते ।
2. बाल गंगाधर तिलक का उत्तरी ध्रुव प्रदेश सम्बन्धी सिद्धान्त (The Arctic Theory of Bal Gangadhar Tilak)– बाल गंगाधर तिलक ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘आर्कटिक होम इन दी वेदाज’ में उत्तरी ध्रुव प्रदेश को आर्यों का मूल निवास स्थान माना है। उनके अनुसार उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश आरम्भ में ठण्डा नहीं था। ज्यों-ज्यों वहां ठण्ड का बढ़ता गया, आर्यों ने इस प्रदेश को छोड़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे वे ईरान, भारत तथा अन्य देशों में जाकर बसने इस मत के पक्ष में उन्होंने निम्नलिखित तर्क दिए हैं –
(i) ऋग्वेद में जिन छः-छ: मास के दिन-रात का वर्णन मिलता है, वह केवल उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश में ही सम्भाव हो सकते हैं।
(ii) ऋग्वेद में वर्णित दीर्घ उषा भी केवल उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश में देखने को मिल सकती है।
(ii) वैज्ञानिकों ने भी आज इस बात को सिद्ध कर दिया है कि कभी ऐसा भी समय था जब उत्तरी ध्रुव प्रदेश के निवास के योग्य था।
बहुत से विद्वानों ने तिलक के इस सिद्धान्त को गलत सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार ऋग्वेद में उषा मुँह पश्चिम में बताया गया है। यह उत्तरी ध्रुव प्रदेश की उषा नहीं हो सकती, क्योंकि ध्रुवीय प्रदेश में उषा दक्षिण में है। उनका मत है कि ऋग्वेद में कहीं भी इस बात का वर्णन नहीं आता कि आर्य लोग किस प्रकार उत्तरी ध्रुर्व से भारत पहुँचे | विद्वानों का यह भी मत है कि आर्यों का ज्ञान अत्यधिक विस्तृत था। इसलिए यदि ऋग्वेद में छः मास के दिन या रात का वर्णन मिलता है, तो इसका यह अर्थ भी तो लिया जा सकता है कि वे अपने प्रदेश के अतिरिक्त दूसरे प्रदेशों की जानकारी जानकारी रखते थे।
3) स्वामी दयानन्द का तिब्बत सम्बन्धी सिद्धान्त (The Tibetan Theory of Swami Daya Nand) – आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द ने अपनी पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में तिब्बत को आर्यों का मूल निवास- स्थान माना है | उन्होंने अपने इस मत को तिब्बत में पड़ने वाली कठोर शीत पर आधारित किया है। उनका कहना है कि आर्य लोग सूर्य व अग्नि की पूजा इसलिए करते थे क्योंकि उनके प्रदेश में शीत का अधिक प्रकोप था। इसके अतिरिक्त ऋग्वेद में वर्णित पशु तथा पक्षी भी उन दिनों तिब्बत में पाए जाते थे। परन्तु अधिकांश विद्वान् इस सिद्धान्त से सहमत नहीं है। उनके अनुसार सूर्य और अग्नि की पूजा से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि आर्यों का देश शीत प्रधान होगा। संसार के बहुत से ऐसे शीत प्रधान देश है, जहां न तो अग्नि की पूजा होती है और न ही सूर्य की दूसरी ओर पीरू में यद्यपि ठण्ड नहीं होती फिर भी पीरू के निवासी सूर्य की उपासना करते हैं। इसके अतिरिक्त विद्वानों के अनुसार तिब्बत की जनता मंगोल जाति के साथ समानता रखती है न कि आर्य जाति के साथ |
4) डॉ० पी० गाईल्स का डैन्यूब नदी घाटी का सिद्धान्त (Danube River Theory of Dr. P. Giles) – डॉ. के अनुसार आर्य लोग डैन्यूब नदी घाटी में स्थित ऑस्ट्रिया और हंगरी के रहने वाले थे। इसका प्रमाण यह है कि यहाँ की भाषाएं आर्यों की भाषा संस्कृत से काफी मेल खाती हैं। इसके अतिरिक्त गाय, घोड़ा आदि पशु जो आर्यों के पालतू पशु थे, इन प्रदेशों में पाए जाते हैं। परन्तु आज विद्वान् इस सिद्धान्त को विशेष महत्त्व प्रदान नहीं करते।
5) प्रो० मैक्स मूलर का मध्य एशिया सम्बन्धी सिद्धान्त (Central Asian Theory of Prof. Max Muller) – प्रसिद्ध विद्वान् प्रो० मैक्स मूलर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘भाषा विज्ञान पर भाषण’ में मध्य एशिया को आर्यों का निवास स्थान बताया है। उनके अनुसार ईरानी, लातीनी, यूनानी, रोमन तथा जर्मन लोगों के पूर्वज कभी मध्य एशिया में रहते थे। परन्तु कुछ समय पश्चात् खाद्यान्न के अभाव तथा जनसंख्या की वृद्धि के कारण उनका वहां रहना कठिन हो गया। अतः आर्य लोगों ने मध्य एशिया को छोड़कर संसार के अन्य भागों में जाना शुरू कर दिया। आर्यों की जिस टोली ने भारत में प्रवेश किया उनकी सन्तान ही भारतीय आर्य कहलाई। इस सिद्धान्त के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जाते है –
संस्कृत ईरानी, अंग्रेजी, लातीनी आदि भाषाओं के अनेक शब्द आपस में मिलते-जुलते हैं | शब्दों की एकरूपता को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इन भाषाओं को बोलने वाले किसी समय एक स्थान पर इकट्ठे निवास करते थे।
प्रो० मैक्स मूलर ने भारतीय आर्यों के धार्मिक ग्रन्थ वेद तथा ईरानियों की पुस्तक ‘जेन्द आवेस्ता’ (Zend Aveate) रचनात्मक अध्ययन किया है। अतः आर्यों का आदि देश वह स्थान होना चाहिए जहां घोड़ा, गाय, पीपल आदि चीजों के लिए अनुकूल वातावरण हो ऐसा स्थान केवल मध्य एशिया का ही कोई प्रदेश हो सकता है।
वेदों में वर्णित आर्य लोग रंग के गोरे, कद के लम्बे तथा अच्छे डील-डौल वाले थे। आर्यों का इस प्रकार का वर्णन जर्मनी, इंग्लैंड तथा ईरान के निवासियों से मेल खाता है।
इस सिद्धान्त को कई विद्वान् स्वीकार नहीं करते। उनका कहना है कि कुछ शब्दों के आपसी मेल से जातियों का आपसी मेल स्थापित नहीं हो सकता। जैसे कि सभी अंग्रेज़ी या फ्रांसीसी बोलने वाले अंग्रेज अथवा फ्रांसीसी नहीं कहलाते | इसके अतिरिक्त बड़े आश्चर्य की बात है कि सभी आर्य लोग खाद्यान्न के अभाव के कारण विदेशों में गये। क्या कोई भी आर्य पीछे स्वदेश न रहा ?
निष्कर्ष (Conclusion):- आर्यों पर दिये गए सिद्धान्तों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सभी सिद्धान्तों में कुछ-न-कुछ त्रुटिया है | फिर भी प्रो० मैक्स मूलर का मध्य एशिया का सिद्धान्त अधिक तर्कसंगत जान पड़ता है | यह ठीक है कि इस सिद्धांत में भी कुछ त्रुटिया है परन्तु फिर भी निम्नलिखित बातों के आधार पर यह मत अधिक विश्वसनीय प्रतीत होता है –
- इस मत की मान्यता का सबसे बड़ा कारण मध्य एशिया की भौगोलिक स्थिति है | मध्य एशिया भारत और ईरान के मध्य स्थित है | इस कारण यह माना जा सकता है कि आर्यों के पूर्वज यहाँ से पूर्व भारत में ईरान की ओर से यूरोप की ओर निकल गए |
- मेसोपोटामिया में मिले बोगज- कोई (Boghaj-koi) शिलालेख से यह बात सिद्ध होती है कि इस काल में आर्य ‘इन्द्र’ और ‘वरुण’ आदि देवताओं की उपासना करते थे। ये देवता भारतीय आर्यों के भी पूजनीय थे | अत: कहा जा सकता है कि आर्य लोग भारत में आने से पहले मध्य एशिया में ही निवास करते रहें होंगे।