(संस्कृत साहित्य )- नीतिशतकम् शलोक (1 .6)
भवन्ति नम्रास्तरवः फलोद्गमैनवाम्बुभिर्दूरविलम्बिनो घनाः।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः,स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्।। ।।
प्रसङ्ग:– प्रस्तुतं पद्यमिदम् अस्माकं पाठ्यपुस्तक-नीतिशतक नाम्नः ग्रंथात उद्घृतं वर्तते। अस्य ग्रन्थस्थ रचनाकार: महाराज: भर्तृहरि: वर्तते। एतस्मिंशच नीतिविषयका: अनेके श्लोकाः सन्ति । ये मानवेभ्यः नीति शिक्षयंति ।
अन्वय – तरवः फलोद्गमैः नम्राः भवन्ति घना: नवाम्बुभिः दूरविलम्बिनः (भवन्ति), सत्पुरुषाः समृद्धिभिः अनुद्धताः (भवन्ति) । एष:परोपकारिणां स्वभाव: एव (अस्ति)।
शब्दार्थ– भवन्ति = होते हैं। नम्राः = झुके हुए, फलोद्गमैः = फल लगने से। नवाम्बुभिः = नवीन जल से। दूरविलम्बिनः = दूर तक लटके हुए। घनाः = बादल। अनुद्धताः = विनम्र, निरभिमानी। सत्पुरुषाः सज्जन। समृद्धिभिः =ऐश्वर्यसम्पन्न होने से। परोपकारिणाम् = परोपकारियों का।
अनुवाद – वृक्ष फल लगने से झुक जाते हैं, मेघ नये जल में (भर जाने पर) दूर तक नीचे लटक आते हैं, सज्जन समृद्धि (ऐश्वर्य) से विनम्र होते हैं। परोपकार करने वालों का यह स्वभाव ही होता है।
भावार्थ– परोपकारियों का यह स्वभाव ही होता है कि वे कभी भी अभिमान नहीं करते। धन-धान्य सम्पन्न होने पर भी वे उद्धत नहीं होते अपितु सबसे विनम्रता का ही व्यवहार करते हैं। वृक्ष तथा मेघ भी सज्जनों की भाँति अपनी समृद्धि के समय झुकना ही श्रेयस्कर समझते हैं। फल लगने पर वृक्षों का झुकना यथा जल से परिपूर्ण बादल का पृथ्वी की ओर झूमना स्वाभाविक ही होता है।