History -इतिहास 17
प्रश्न– राजपूतों की उत्पत्ति के भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए। आपके विचार में कौन- सा सिद्धान्त सार्थक है?
Discuss is the various theories about the origin of the Rajputs. Which in your opinion is more Sutaible.
अथवा
राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए। उनमें कौन-सा सबसे अधिक प्रमाणित है और क्यों ? Discuss the various theories about the origin of Rajputs. Which of these is the most plausible and why ?
उत्तर– राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में इतिहासकारों ने भिन्नत मत प्रकट किए हैं। कुछ इतिहासकारों ने राजपूतों को बाहरी आक्रमणकारी मानते है। कुछ इतिहासकार उनकी उत्पत्ति अग्निकुण्ड से हुई बताते हैं। कुछ राजपूतों को सूर्यवंशी अथवा चन्द्रवंशी मानते हैं। कुछ अन्य इतिहासकार राजपूतों को मिश्रित जाति से सम्बन्धित बताते हैं। इस प्रकार राजपूतों की उत्पत्ति के कई सम्बन्धित है। इन सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार हैं –
विदेशियों से उत्पत्ति का सिद्धान्त (Foreign Origin Theory)- इतिहासकार कर्नल टॉड के अनुसार, राजपूत शक, श्वेत-हूण, कुषाण आदि विदेशी आक्रमणकारी जातियों के वंशज है। अपनी पुस्तक ‘राजस्थान’ में कर्नल टॉड ने कहा है कि कालांतर में इन विदेशी जातियों ने भारतीयों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए तथा उनकी संस्कृति में रंग गए। कर्नल टॉड अनुसार वे इन वैवाहिक सम्बन्धों के पश्चात् भारत में ही स्थायी रूप से निवास करने लगे थे। इनमें से जिन ने ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों से विवाह किया वे ही राजपूत कहलाए। कर्नल टॉड के इन सिद्धान्तों को कुक्स तथा भण्डारकर व अन्य इतिहासकारों का समर्थन प्राप्त है। इस सिद्धान्त को निम्नलिखित प्रमाणों पर आधारित किया गया है –
900 वर्ष के प्राचीन इतिहास में ‘राजपूत’ शब्द का प्रयोग कहीं नहीं मिलता, अतः अवश्य ही वे विदेशियों के वंशज प्रतीत होते है |
राजपूतों में ‘अग्नि पूजा’ हूण तथा शक जातियों से ली गई है।
अग्नि-कुण्ड का सिद्धान्त (Agnikunda Theory)- इस सिद्धान्त का वर्णन सबसे पहले पृथ्वीराज के मन्त्री ने अपनी पुस्तक ‘पृथ्वीराज रासो’ में किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार राजपूत यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न हुए है कहा जाता है कि ब्राह्मण परशुराम ने सभी क्षत्रियों का नाश कर दिया था। परन्तु जब उन्हें अपनी रक्षा के लिए किसी जाति की आवश्यकता अनुभव हुई तो उन्होंने 40 दिनों तक आबू पर्वत पर यज्ञ किया। उनकी प्रार्थना स्वीकार कर हवन की अग्नि से चार पुरुष निकले, जिन्होंने चार महान् राजपूत वंशों परिहार, परमार, चौहान और चालुक्य की नीव रखी | परन्तु अधिकतर इतिहासकार इस सिद्धान्त को नहीं मानते। उनका मत है कि यह सिद्धान्त वास्तविकता पर आधारित न होकर कल्पना तथा धारणा पर आधारित है।
क्षत्रियों से उत्पत्ति का सिद्धान्त (Kshatriyas Origin Theory) – अधिकांश भारतीय इतिहासकार इस उत्पत्ति के सिद्धान्त से बिल्कुल सहमत नहीं है। उनका मत है कि राजपूत क्षत्रियों, सूर्यवंशी तथा चन्द्रवंश से सम्बन्धित हैं। इन सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने वाले इतिहासकार वेद व्यास तथा गौरी शंकर ओझा है। अपने मत के सही होने का निम्नलिखित प्रमाणों पर आधारित किया है –
१. ‘राजपूत’ शब्द ‘राजपुत्र’ शब्द का विकृत रूप है, जिसका वर्णन महाभारत में भी आता है।
२. राजपूतों के रीति-रिवाज तथा रहन-सहन के ढंग क्षत्रियों से काफ़ी मेल खाते हैं।
३. राजपूतों की शक्ल-सूरत भी विदेशियों की अपेक्षा प्राचीन आर्यों से अधिक मिलती-जुलती है।
४. अश्वमेध यज्ञ तथा अग्नि-पूजा करने का प्रचलन हमारे क्षत्रियों में भी था। अत: राजपूतों ने ये बातें विदेशियों से नहीं आर्यों सीखी हैं।
५. आज भी जयपुर, मेवाड़ तथा बीकानेर के राजपूत अपने आपको सूर्यवंशी तथा जैसलमेर और कच्छ के राजपूत चन्द्रवंशी कहलाने में गर्व का अनुभव करते हैं।
मिश्रित जाति का सिद्धान्त (Theory of Mixed Origin) – डॉ० वी० ए० स्मिथ के अनुसार राजपूत भारतीय थे और न ही पूर्ण रूप से विदेशी | वे इन दोनों जातियों के मिश्रण से उत्पन्न हुए थे। भारत में श्वेत- हूण, शक, कुषाण नामक विदेशी जातियां स्थायी रूप से बस गई थीं। उन्होंने भारतीयों से विवाह सम्बन्ध स्थापित कर लिए इनसे चौहान, परमार, प्रतिहार तथा सिसोदिया आदि राजपूत राजवशों की उत्पत्ति हुई। परन्तु चन्देल, राठौर आदि राजवंशों की उत्पत्ति गोंड, भार तथा कोल आदि भारतीय जातियों के मेल से हुई।
सबसे विश्वसनीय सिद्धान्त (Most Accepted Theory) – राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में आए सिद्धांतों से यह ज्ञात होता है कि कर्नल टाड का मत कि राजपूत विदेशी थे, को स्वीकार नहीं किया जा सकता | व्यास और गौरी शंकर ओझा का मत कि राजपूत सूर्यवंशी तथा चन्द्रवंशी थे, को भी नहीं माना जा सकता, अन्य सिद्धान्त कि राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुण्ड से हुई, एक काल्पनिक कथा लगती है। अत: इसका कोई प्रमाण नहीं है। परिणामस्वरूप हम आधुनिक इतिहासकार वी० ए० स्मिथ के इस मत से सहमत हैं कि राजपूत मिश्रित जाति से सम्बन्ध रखते थे |