(संस्कृत साहित्य )- नीतिशतकम् शलोक (1 .7)
जाड्यं हीमति गण्यते, व्रतरुचौ दम्मः, शुचौ कैतवं,
शूरे निपुणता, मुनौ विमतिता, दैन्यं प्रियालापिनि।
तेजस्विन्यवलिप्तता, मुखरता वक्तर्यशक्तिः स्थिरे,
तत्को नाम गुणो भवेत्स गुणिनां यो दुर्जर्नाङ्कितः।।7 ।।
प्रसङ्ग:– प्रस्तुतं पद्यमिदम् अस्माकं पाठ्यपुस्तक-नीतिशतक नाम्नः ग्रंथात उद्घृतं वर्तते। अस्य ग्रन्थस्थ रचनाकार: महाराज: भर्तृहरि: वर्तते। एतस्मिंशच नीतिविषयका: अनेके श्लोकाः सन्ति । मानवेभ्यः नीति शिक्षयंति ।
अन्वय – ह्रीमति जाड्यं गण्यते, व्रतरुचौ दम्भः, शुचौ कैतवं, शूरे निघृणता, मुनौ विमतिता, प्रियालापिनि दैन्यं, तेजस्विनि अवलिप्तता, वक्तरि मुखरता, स्थिरे (जने) अशक्तिः (गण्यते)। तत् गुणिनां को नाम गुणः भवेत् यः दुर्जनैः न अङ्कितः।
शब्दार्थ – जाड्यं = जड़ता, मूढता। ह्रीमति = लज्जा शील में। गण्यते : कहा जाता है। व्रतरुचौ = व्रत-उपवासादि में रुचि रखने वाले में। दम्भः = पाखण्ड शुचौ = पवित्रता में। कैतवं = कपटीपना, धूर्तता। शूरे = बलवान् में। निघृणता निर्दयीपना। मुनौ = मुनियों में। विमतिता बुद्धि-हीनता। दैन्यं = दीनता। प्रियालापिनि = मधुर भाषी में। तेजस्विनि = तेजस्वी में। अवलिप्तता = अंहकारी,अभिमानी। मुखरता = वाचालता। वक्तरि = वक्ता में। अशक्तिः कमजोर। स्थिरे = गम्भीर, शान्त, स्थिर रहने वाले में। गुणिनां = गुणवानों का। अंकित: = कलुषित, कलङ्कित
अनुवाद – (दुर्जन लोग) लज्जाशील पुरुष में जड़ता, अभिरुचि रखने वालों में पाखण्ड, पवित्र चरित्र वालों में कपटता, पराक्रमी पुरुषों में निर्दयता, मुनि (अथवा मौनी) में मतिहीनता, मृदृभाषी में दीनता, तेजस्वी पुरुषों में घमण्ड, (अच्छे) वक्ता में बकवादिता (मुखरता), तथा गम्भीर पुरुषों में असर्मथता (आदि दोषों) का होना कहा करते हैं। तो ऐसी परिस्थिति में फिर गुणवानों का वह कौन सा ऐसा गुण है जिसको दुर्जनों ने कलङ्कित न किया हो?
भावार्थ – दुष्ट व्यक्ति सत्पुरुषों के गुणों में कोई न कोई दोष अवश्य ही निकालते रहते हैं। दुर्जनों का यह तो स्वभाव ही है कि उन्हें गुणियों के गुण भी कलंक ही नजर आते हैं। गुणों में दोषारोपण करना मानो उनका कर्तव्य है। वे सज्जनों की किसी भी अच्छी बात को सहन नहीं कर सकते।