(संस्कृत साहित्य )- नीतिशतकम् शलोक (1 .9)
यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः,
स पण्डितः, स श्रुतवान् गुणज्ञः।
स एव वक्ता, स च दर्शनीयः,
सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति।।9।।
प्रसङ्ग:– प्रस्तुतं पद्यमिदम् अस्माकं पाठ्यपुस्तक-नीतिशतक नाम्नः ग्रंथात उद्घृतं वर्तते। अस्य ग्रन्थस्थ रचनाकार: महाराज: भर्तृहरि: वर्तते। एतस्मिंशच नीतिविषयका: अनेके श्लोकाः सन्ति । मानवेभ्यः नीति शिक्षयंति ।
अन्वय – यस्य वित्तम् अस्ति, सः नरः कुलीनः, सः पण्डितः, सः श्रुतवान्(सः)गुणज्ञः, सः एव वक्ता, सः च दर्शनीयः (भवति) सर्वे गुणाः काञ्चनम् आश्रयन्ति।
शब्दार्थ-वित्तं = धन। कुलीनः ऊंचे कुल का। श्रुतवान् = वेदज्ञ,विद्वान्। गुणज्ञः = गुणों को जानने वाला। वक्ता = बोलने वाला। दर्शनीयः = देखने योग्य, रूपवान्। सर्वे-गुणाः = समस्त गुण।काञ्चनम् = सुवर्ण-धन के आश्रयन्ति =आश्रय लेते हैं।
अनुवाद – जिस के पास (संसार में) धन है, वही मनुष्य कुलीन (श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न), वही विद्वान्, वही गुणों का ज्ञाता, वही वक्ता (बोलने में दक्ष)तथा वही (पुरुष) दर्शन के योग्य (सुन्दर समझा जाता) है। (इससे प्रत्यक्ष है कि) सब गुण कांचन (धन) में ही निवास करते हैं।
भावार्थ- धन के प्रभाव से मनुष्य वह भी बन जाता है जो वह स्वयं नहीं होता। मनुष्य की कुलीनता, विद्वत्ता, वाग्मिता आदि समस्त गुण धन के ही आश्रित होते हैं; जिसके पास धन नहीं उस व्यक्ति का जीवन व्यर्थ ही समझना चाहिए