History -इतिहास 18
राजपूतों के महत्त्वपूर्ण वंश (Important Dynasties of the Rajputs):-
प्रश्न– उत्तरी भारत के कुछ प्रसिद्ध राजपूत वंशों का संक्षिप्त वर्णन करो। a brief account of the important dynasties of the Rajputs in Northern India.)
उत्तर– 647 ई० से 1192 ई० तक भारत अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। इसके शासक सदा एक दुसरे से लड़ते रहते थे | अतः इस काल में कई राज्य समाप्त हुए और कई अन्य राज्यों की नींव पड़ी। इन सभी राज्यों की विशेषता यह थी कि इनके सभी शासक राजपूत थे। यही कारण है कि इतिहास के इन वर्षों को ‘राजपूत काल’ माना जाता है। इस काल के उत्तरी भारत के मुख्य राजपूत राज्य निम्नलिखित थे –
I. कन्नौज के प्रतिहार तथा राठौर
(Pratihars and Rathors of Kanauj)
प्रतिहार वंश (Pratihar Dynasty) – इस वंश की नींव नौवीं शताब्दी में नागभट्ट प्रथम ने रखी थी। इस वंश का प्रभावशाली शासक मिहिरभोज था। वह एक महान् योद्धा था। उसने अनेक विजय प्राप्त की। पंजाब, अवध, अयोध्या, कन्नौज, मालवा तथा राजपूताना का अधिकांश भाग उसके राज्य में सम्मिलित था। इनके काल के सिक्के मिले हैं। इन सिक्कों से पता चलता है कि यह विष्णु का उपासक था। मिहिरभोज के पश्चात् महेन्द्रपाल राजगद्दी पर बैठा। वह भी एक प्रतापी शासक था। उसने अपने पिता द्वारा स्थापित सुदृढ़ साम्राज्य पर लगभग 20 वर्षों तक राज्य किया। वह विद्वानों तथा कवियों का बड़ा आदर करता था। प्रसिद्ध कवि राजशेखर उसके राज्य की शोभा था। महेन्द्रपाल के पश्चात् इस वंश के कर्णधार महिपाल, देवपाल, विजयपाल तथा राज्यपाल बने। ये अयोग्य तथा दुर्बल थे। उनकी अयोग्यता तथा दुर्बलता के कारण प्रतिहार वंश का पतन आरम्भ हो गया। अन्तिम प्रतिहार राज्यपाल ने 1018 ई० में महमूद गजनवी की अधीनता स्वीकार कर ली थी। पड़ोसी राजा इस बात को सहन न कर सके उन्होंने राज्यपाल पर आक्रमण कर दिया और उसे मार डाला। इस तरह प्रतिहार वंश का अन्त हो गया।
राठौर वंश (Rathore Dynasty)- 1090 ई० में कन्नीज पर राठौर वंश ने अधिकार कर लिया। इस वंश की नींव राव सीहा ने रखी थी। उनके राज्य में अयोध्या कन्नौज तथा बनारस के प्रदेश सम्मिलित थे। इस वंश का सबसे अधिक प्रसिद्ध शासक गोविन्दचन्द्र था। वह चन्द्रदेव का पोता था। उसने 1114 ई० से 1160 ई० तक राज्य किया। उसकी शक्ति के कारण कन्नौज राज्य ने अपना खोया हुआ यश फिर से प्राप्त कर लिया।
राठौर वंश का अन्तिन प्रसिद्ध राजा जयचन्द राठौर था वह राठौर वंश का पांचवां शासक था। उसकी दिल्ली तथा अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान से गहरी शत्रुता थी। 1194 ई० में मुहम्मद गौरी ने कन्नौज पर आक्रमण कर दिया था। जयचन्द इस में पराजित हुआ और मारा गया। इस प्रकार कन्नौज मुसलमानों के अधिकार में आ गया।
II. मालवा के परमार
(Parmars of Malwa)
परमार वंश (Parmar Dynasty)- मालवा प्रदेश पर नौवों शताब्दी में प्रतिहार वंश का राज्य था, परन्तु 10वीं शताब्दी में यहां परमार वंश ने अपनी सत्ता स्थापित कर ली। वैसे इस वंश का संस्थापक कृष्णराज था, परन्तु वास्तविक जीयक को माना जाता है। धारानगरी इस राज्य की राजधानी थी परमार वंश का प्रथम महान् शासक मुञ्ज था। ० से 995 ई० तक राज्य किया। वह वास्तुकला का बड़ा प्रेमी था। उसने अनेक सुन्दर मन्दिरों का निर्माण यह विद्वानों का बड़ा आदर करता था। धनञ्जय तथा धनिक नामक दो विद्वान् उसके दरबार की महान् विभूतियां का प्रसिद्ध राजा भोज था। वह इतिहास में धारानगरी का राजा भोज ‘ के नाम से विख्यात है। वह संस्कृत का । उसने धारानगरी में एक संस्कृत विश्वविद्यालय की भी नींव रखी। उसके शासन काल में अनेक सुन्दर निर्माण हुआ। भोपाल के समीप ‘भोजपुर’ नामक झील का निर्माण भी उसी ने करवाया था। उसने शिक्षा और पर्याप्त संरक्षण प्रदान किया। 1018 ई० से 1060 ई० तक मालवा राज्य की बागडोर उसी के हाथ में रही। उसने को प्रतिष्ठा और यश में खूब वृद्धि की। परन्तु उसके उत्तराधिकारी दुर्बल थे। अतः उसकी मृत्यु के पश्चात् कुछ स्टोरमार वंश का पतन हो गया।
III. दिल्ली तथा अजमेर के चौहान
(Chauhans of Delhi and Ajmer)
चौहान वंश (Chauhan Dynasty)- इस वंश की नींव गुवाक ने रखी थी। 11वीं शताब्दी में इस वंश के शासक ने अजमेर और फिर 12वीं शताब्दी में बीसलदेव ने दिल्ली को जीत लिया। इस प्रकार दिल्ली तथा अजमेर चौहान राजा के अधीन हो गए।
बीसलदेव ने 1153 ई० से 1164 ई० तक राज्य किया था। इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा पृथ्वीराज चौहान था। उसकी कान्यकुब्ज के राजा जयचन्द्र से भारी शत्रुता थी। इसका कारण यह था कि उसने बलपूर्वक जयचन्द की पुत्री संयोगिता से विवाह किया था | पृथ्वीराज बड़ा ही वीर तथा पराक्रमी शासक था। 1191 ई० में उसने मुहम्मद गौरी को तराइन के प्रथम युद्ध में परास्त किया | 1192 ई० में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज पर फिर आक्रमण किया। इस बार पृथ्वीराज पराजित हुआ। इस प्रकार दिल्ली मुसलमानों के अधिकार में आ गया और चौहान राज्य का अन्त हो गया।
IV. बुन्देलखण्ड के चन्देल
(Chandelas of Bundelkhand)
चंदेला वंश (Chandela Dynasty)- गंगा तथा नर्मदा नदियों के बीच स्थित यह राज्य पहले प्रतिहारों के अधीन था बाद में चंदेला वंश के राजा विनयादित्य नामक शासक के हाथ में रहा | उसने अपने वंश के गौरव को बनाए रखा, परन्तु उसके अपने लोग गद्दार निकले | परिणाम स्वरूप नौवीं शताब्दी के मध्य इस वंश का अंत हो गया |
उत्पल वंश (utapal vansh)- 855 ई. में यहाँ अवन्ति वर्मन ने उत्पल वंश की नींव रखी | वह एक कुशल शासक के साथ साथ एक साहित्य प्रेमी भी था | इस वंश ने 11वीं शताब्दी तक राज्य किया | इस वंश के अन्य प्रसिद्ध राजाओं में गोपालवर्मन, क्षेत्रगुप्त तथा रानी दीदा आते है |
लौहार वंश (lohar vansh)- इस वंश की स्थापना 1003 ई. में संग्रामराज द्वारा की गई थी | इस वंश का प्रसिद्ध शासक हर्ष था | उसने 1089 ई. से 1101 ई. तक राज्य किया था |