Last Updated : 22-01-2024
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ओ३म्
समास प्रकरण
संस्‍कृत व्याकरण

समास
समास के प्रकार

समासः पचधा। तत्र समसनं समासः।
१. स च विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवलसमासः प्रथमः।
२. प्रायेण पूवपदार्थप्रधानोव्ययीभावो द्वितीयः।
३. प्रायेणोत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषस्ततीयः तत्पुरुषभेदः कर्मधारयः, कर्मधारय-भेदो द्विगु।
४. प्रायेणान्यपदार्थ-प्रधानो बहुब्रीहिश्चतुर्थः।
५. प्रायेणोभयपदार्थ-प्रधानो द्वन्द्वः पचमः।
व्याख्याः समास-इति-समास पांच प्रकार का होता है।
तत्रेति-समसन-संक्षेप को समास कहते हैं।
अनेक पदों का एक पद बन जाना समसन होता है। समास का शब्दार्थ है संक्षेप, अनेक पदों का एक पद बन जाना संक्षेप ही है।
अब समास के पाचों प्रकारों के नाम और लक्षण क्रमशः बताये जाते हैं।
स चेति- वह समास विशेष नाम से रहित केवल-समास नामक प्रथम है अर्थात् जिस समास का कोई विशेष नहीं कहा गया, उसे केवल समास कहते हैं, यह समास का पहला प्रकार है।
जैसे-भूतपूर्वः (जो पहले हो चुका)- यहां ‘सहं सुपा 2.1.4’ से समास हुआ है। वह किसी विशेष समास के अधिकार में नहीं है, इसलिये केवल समास है।
प्रायेणिति- जिसमें प्रायः पूर्व पद का अर्थ प्रधान हो, वह अव्ययीभाव समास कहा जाता है, वह समास का दूसरा भेद है।
प्रधानता का निर्णय अग्रिम पदार्थ से अन्वय के द्वारा किया जाता है। जिस अर्थ का अन्वय अग्रिम पदार्थ के साथ होगा, वह प्रधान माना जाएगा।
जैसे-अधिहरि (हरि में)- यहां पूर्व पद अधि का अर्थ ‘में’ प्रधान है क्योंकि उसी का नाम अन्य पदार्थों से अन्वय होता है, इसलिये यह अव्ययीभाव समास है।
प्रायः कहने से – उन्मत्ता गङ्गा यत्र स उन्मत्तगङ्गो नाम देशः – जहां गङ्गा उन्मत्त है वह उन्मत्तगङ्ग नाम देश है- यहां उन्मत्तगङ्ग में पूर्व पद का अर्थ प्रधान नहीं, अपितु देश का रूप अन्य पद का अर्थ प्रधान है, पर अव्ययी भाव के अधिकार में होने से यह भी अव्ययीभाव समास है। ‘प्रायेण’ यदि न कहा जाय तो इसकी अव्ययी भाव संज्ञा न हो सकेगी।
प्रायेणोत्तरेति- जिसमें प्राय उत्तरपद का अर्थ प्रधान हो, वह तत्पुरुष समास कहा जाता है। यह समास का तीसरा पद है।
जैसे- राजपुरुषः (राजा का आदमी, सरकारी आदमी) यहां उत्तरपद पुरुष का अर्थ प्रधान है, क्योंकि उसी का अन्वय आगे आनेवाले पदार्थों से होता है इसलिये यह तत्पुरुष समास है।
प्राय कहने से जहां ‘पचानां तन्त्राणां समाहारः ‘पाच तन्त्रों का समाहार’ इस विग्रह में समाहार अर्थ में तत्पुरुष होता है, वहां भी लक्षण घट जाय, अन्यथा समाहार अन्य पद का अर्थ है, उत्तरपद का अर्थ नहीं। प्राय कहने से इसकी भी तत्पुरुष संज्ञा हो जाती है।
तत्पुरुषभेद-इति- तत्पुरुष का ही एक भेद कर्मधारय है। जहां विशेष्य और विशेषण का समास होता है, उसे कर्मधारय कहते हैं। यह तत्पुरुष का ही विशेष प्रकार है, क्योंकि यहां उत्तरपद का अर्थ प्रधान होता है।
जैसे-नीलोत्पलम् (नीलं च तत् उत्पलं च – नीला कमल) यहां नील विशेषण और उत्पल विशेष्य का समास होता है। अतः यह कर्मधारय समास है।
कर्मधारयेति – कर्मधारय का एक प्रकार द्विगु है।
विशेष्य और विशेषण के समास में यदि विशेषण संख्यावाचक हो तो उसे द्विगु कहते हैं।
जैसे-पंचगवम् पचानां गवां समाहारः पांच गौओं का समाहार – यहां विशेषण पंच संख्यावाचक है, इसलिये यह द्विगु समास है।
प्रायेणान्येति – जिस समास में प्रायः अन्य पद का अर्थ प्रधान हो, वह बहुब्रीहि होता है, यह चौथा समास है।
जैसे – लम्बकर्णः लम्बे कानवाला यहां लम्ब और कर्ण- इस समास के अन्तर्गत पदों से भिन्न पद का अर्थ प्रधान है, क्योंकि उसी अर्थ का और पदार्थों के साथ अन्वय होता है, इसीलिए यह बहुब्रीहि समास है।
प्रायः कहने का फल यह है कि बहुब्रीहि के अधिकार में आये हुए कुछ ‘द्वित्राः’ (दो या तीन) आदि समास भी बहव्रीहि कहे जाते हैं, अन्यथा उभय पदार्थ प्रधान होने के कारण उसे बहुब्रीहि न कहा जा सकेगा।
प्रायेणोभयेति – जिस समास में प्रायः दोनों पदों का अर्थ प्रधान हो, वह पांचवां द्वन्द्व समास है।
जैसे- रामलक्ष्मणौ (राम और लक्ष्मण) – यहां दोनों पदों का अर्थ प्रधान है, अतः यह द्वन्द्व समास है।
प्राय कहने का तात्पर्य यह है कि समाहार द्वन्द्व में समाहार अर्थ के अन्य पदार्थ होने पर भी संज्ञा हो जाती है। इन पांच समासों में बहुब्रीहि और द्वन्द्व अनेक पदों के भी होते हैं, शेष दो-दो पदों के होते हैं।
इन समासों के नाम नीचे लिखी द्वयर्थक सूक्ति में बड़े सुन्दर ढंग से आये हैं-
द्वन्द्वोस्मि द्विगुरहं गहे च मे सततमव्ययीभावः।
तत्पुरुष कर्म धारय येनाहं स्यां बहुब्रीहिः।।
कोई व्यक्ति किसी मजदूर को अपने यहां नोकरी करने के लिये कह रहा है (शायद युद्ध का ही जमाना होगा, नौकर मिलते न होंगे- हे पुरुष, मैं द्वन्द्व हूं अर्थात् पति-पत्नी दो हैं तुम्हें काम कम करना होगा, मैं द्विगु हूँ अर्थात् मेरे पास केवल दो बेल अथवा गौ हैं-इसलिये पशुओं का कार्य भी कम है। मेरे घर में सदा अव्ययीभाव है अर्थात् कम खर्च किया जाता है, खर्च अधिक तब होता है जब कार्य अधिक हो। इसलिए तुम कर्म धारय अर्थात् नौरी स्वीकार कर लो, जिससे मैं बहुब्रीहि-अर्थात् बहुत धनवाला हो जाऊं, मेरे पास बहुत धन हो जाये।

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